500 रु से शुरू किया था आचार का व्यापार । आज कमाती है 2 करोड़ रु सालाना । जरूर पढ़ें ।

मित्रो राजीव भाई कहते थे हर हकीकत शुरू मे एक सपना होती है परंतु जब करने वाले लोग लग जाते है तो वो हकीकत हो जाती है ऐसी ही कुछ कहानी है हरियाणा के गुडगाँव मे रहने वाली कृष्णा यादव की ।

कृषणा यादव बताती है कुछ वर्ष पूर्व बुरे आर्थिक हालातों के कारण उन्हे यूपी छोड़कर हरियाणा मे आकर रहना पड़ा रोजगार न होने के कारण उसके पति गोवर्धन यादव और उसने थोड़ी सी जमीन पर सब्जी उगानी शुरू की। लेकिन आर्थिक हालत वहीं की वही । क्योंकि मंडी मे सब्जी के दाम कम मिलते थे।

ऐसे मे उन्हे कुछ आपसी विचार करके उसी सब्जी से आचार बनाना शुरू कर दिया
लेकिन समस्या ये कि अब उस आचार को बेचा कहाँ जाए ?? तो खुद ही गाँव के निकट लगते छोटे शहरों मे सदको पर बेचना शुरू कर दिया । गुणवत्ता अच्छी होने के कारण लोगो को आचार बहुत पसंद आने लगा ।

और आज स्थिति ये है कि मात्र एक छोटे से कमरे मे 500 रु से आचार बनाने का
कार्य शुरू करने वाली कृष्णा यादव सालाना 2 करोड़ रु कमा रही है ,बहन कृष्णा ने 4 से ज्यादा लघु ईकाईया भी शुरू कर ली है जिसमे कुल 152 उत्पाद बनाये जाते है ,इस कार्य मे कृष्णा 500 महिलाओं को रोजगार भी दे रही है ।बहन कृष्णा को कृषि विभाग के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है ।

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मित्रो राजीव भाई जिस स्वदेशी की बात करते है वो यही है ।

आप सोचिए । यदि एक कृष्णा जैसी एक महिला मात्र आचार बनाने के कार्य की शुरुवात कर 500 महिलाओं को रोजगार दे सकती है तो क्या भारत मे ऐसी 1000 महिलाएं 5 लाख लोगो को रोजगार नहीं दे सकती ??

भारत मे कौन सा गाँव है जहां की महिलाएं आचार बनाना नहीं जानती ??

क्या भारत के 6 लाख गांवो मे से ऐसी 1000 महिलाएं 5 लाख महिलाओं को रोजगार नहीं दे सकती ?? जरूर दे सकती है मित्रो लेकिन बेशर्ते आप ऐसी लघु उद्द्योग चलाने वाली महिलाओं को सहयोग दीजिये ।

राजीव भी के स्वदेशी का अर्थ समझें ।
स्वदेशी की सरलीकृत परिभाषा

स्वदेशी: जो प्रकृति और मनुष्य का शोषण किये बिना अपनी सनातन संस्कृति और सभ्यता के अनुकूल आपके स्थान के सबसे निकट किसी स्थानीय कारीगर द्वारा बनायीं गयी या कोई सेवा दी गयी हो और जिसका पैसा स्थानीय अर्थव्यवस्था में प्रयोग होता हो वो स्वदेशी है ।

(जैसे- कुम्हार, बढ़ई, लौहार, मोची, किसान, सब्जीवाला, स्थानीय भोजनालय, धोबी, नाई, दर्जी आदि द्वारा उत्पादित वस्तु या सेवा)

अब आप सोचिए की बहन कृष्णा जिस छोटे से गाँव और उसके साथ लगते कुछ शहरों मे जहां आचार बेच रही है वहाँ के लोग बहन कृष्णा से आचार ना लेकर फर्जी स्वदेशी की आड़ मे पतंजलि,डाबर या अन्य बड़ी कंपनी का आचार लेना शुरू कर दें । तो ऐसे मे 500 महिलाओं के रोजगार का क्या होगा ??

मित्रो वास्तविक स्वदेशी को पहचानें । अपना धन घर के निकट किसी गरीब स्थानीय लघु उद्द्योग चलाने वालों को दें जिससे आपकी स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो ।आपके धन से यदि आपके घर ,शहर गाँव के सबसे निकट किसी गरीब या लघु उद्द्योग को रोजगार मिल रहा है तो यही स्वदेशी का वास्तविक अर्थ है । स्वदेशी मे धन का विकेंद्रीकरण होने चाहिए । धन एक जगह पर केन्द्रित नहीं होना चाहिए ऐसा नहीं की सारा धन डाबर या पतंजलि के हरिद्वार मे जाकर जमा हो जाए ।

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