‘धर्मनिरपेक्षता’ पर राजीव भाई का ये लेख जरूर पढ़ें ,शेयर करें !

मित्रो महाऋषि चाणक्य का एक सूत्र है धर्मस्य मूलम अर्थम् अर्थस्य मूलम कामम !इसका सीधा सा अर्थ है धर्म के मूल मे अर्थ (धन) है ! अर्थात अर्थ कमजोर हुआ तो
धर्म अपने आप कमजोर होता है !

अर्थात अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है तो धर्म पालन नहीं होता भूखे लोग मंदिर नहीं बनाते और भूखे लोग भजन भी नहीं करते ! पेट भरा हुआ होना चाहिए समृद्धि होनी चाहिए
तब मंदिर बनते है तब मठ बनते है तब संस्थाएं बनती है और धार्मिक कार्य होते है !

अतिरिक्त धन अगर आपके पास होगा तब ही गौशालाएँ बनती है मंदिर बनते है जागरण आदि होते है,रथयात्राएं निकलती है, जिनको खुद को खाने के लाले पड़े हो वो बेचारे क्या आर्थिक दान देंगे ? और बिना अर्थ के क्या धर्म टिकेगा ??

तो अर्थ जितना मजबूत होगा धर्म उतना फैलेगा अर्थ जितना कमज़ोर होगा धर्म उतना कमजोर होगा ! भारत जब जब आर्थिक रूप से मजबूत था भारत की धर्म ध्वजा पूरी दुनिया मे फैलती थी भारत जब सोने की चिड़िया था तो भारत का धर्म पूरी दुनिया मे फैला बोध धर्म गया, जैन धर्म गया ,सनातन धर्म गया !

और यही पूरी दुनिया मे देखा जाता है जिन देशो की अर्थव्यवस्था कमजोर है उनका धर्म भी कमजोर होता है और जिन देशो की अर्थव्यवस्था मजबूत है उनका धर्म भी मजबूत होता है ! आप देख लो यूरोप और अमेरिका की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है तो ईसाईयत पूरी ताकत से लगी हुई है पूरी दुनिया मे !!

अरब देशो की अर्थव्यवस्था पट्रोल और डीजल की बिक्री के कारण पिछले 40 वर्षो मे मजबूत हुई है ! 40 साल पहले तो इनको कोई जानता पहचानता नहीं था तो इस्लाम को देख लो आप कैसे पूरी ताकत से दुनिया के सामने खड़ा हो रहा है !

आये दिन आप अखबारों मे पढ़ते है ये अरब देशो के इस्लामी आतंकी संघठन अमेरिका के राष्ट्रपति तक को धमकी दे डालते है क्योंकि उनको पता है उनके देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है उनको पता है उनके देश से कितना पट्रोल पूरी दुनिया मे बिक रहा है और उनको कितने अरबों डालर की कमाई हो रही है !! उसकी ताकत पर वो धमकी देते है !!

और हमारे देश के प्रधानमंत्री ,राष्ट्रपति का तो दम निकल जाता है ‘हिन्दू’ ‘भारतीय’ आदि शब्दो का भी प्रयोग करने मे ! क्यों ?? क्योंकि आपकी आर्थिक शक्ति कमजोर है तो धर्म तो कमजोर होने ही वाला है ! और हमारे देश की आर्थिक शक्ति इतनी कमजोर है की अमेरिका अगर भारत को कर्ज ना दे तो भारत सरकार अपना बजट भी नहीं बना सकती है ! पहले से ही हमारे देश पर 55 लाख 87 हजार 149 करोड़ का कर्ज है !!

हर साल हमारे देश के बजट का सबसे ज्यादा हिस्सा कर्जे का ब्याज भरने मे चला जाता है !
मित्रो इस बार मोदी सरकार ने आपके मेरे tax का 4,27,011 ( 4 लाख 27 हजार करोड़ ) तो पिछले कर्जे का ब्याज भरने मे खर्च कर दिया !!

सिर्फ ब्याज भरने मे 427011 ( 4 लाख 27 हजार करोड़ ) !
अर्थात मूलधन वही का वही खड़ा है और 427011 ( 4 लाख 27 हजार करोड़ )
ब्याज मे चला गया !

427011 ( 4 लाख 27 हजार करोड़ ) एक वर्ष का ब्याज भरना
आप इसका अर्थ समझते हैं मित्रो ??

427011 करोड़ को 12 से भाग (divide) करिये

तो जवाब आएगा 35584 करोड़ ( 35 हजार 584 करोड़ ) एक महीने का ब्याज !

एक महीने मे 30 दिन !

अब इस 35584 करोड़ ( 35 हजार 584 करोड़ ) 30 से भाग (divide) करिये !

तो आ जाएगा 1186 करोड़ ब्याज (एक दिन का ब्याज) !

अब इस 1186 करोड़ को 24 से से भाग (divide) कर दीजिये

तो आएगा 49 करोड़ (एक घंटे का ब्याज )!

एक घंटे मे 60 मिनट ! तो कर दीजिये 49 करोड़ को 60 से भाग (divide) !!

तो आ जाएगा 81,66,666 ( 81 लाख रूपये एक मिनट का ब्याज ) !

एक मिनट मे 60 सेकेंड ! तो कर दीजिये 81 लाख को 60 से फिर भाग (divide) !

तो आ जाएगा 135000 ( 1 लाख 35 हजार रूपये ) 1 सेकेंड का ब्याज !
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सोचिए मित्रो सोचिए !जो देश प्रति सेकेंड 1 लाख 35 हजार रूपये का पुराने कर्जे का ब्याज भर रहा है वो किस विकास की और बढ़ रहा है ??

और तो और 427011 ( 4 लाख 27 हजार करोड़ ) का व्याज भरा तो 531177 ( 5 लाख 31 हजार 177 ) करोड़ का नया कर्ज ले लिया !
कुल कर्जा 62 लाख करोड़ को पार कर जाएगा !!

अगर आप पिछले 1 मिनट से ये post पर रहे तो समझ लीजिये 81,66,666 ( 81 लाख रूपये एक मिनट का ब्याज ) चला गया !
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सोचिए मित्रो भारत की आर्थिक हालत कितनी कमजोर है
हर दिन हमारा देश आर्थिक गुलामी मे धसता चला जा रहा है ! हम कर्ज आधारित अर्थव्यवस्था चला रहे है और जो कर्जदार होता है वो सबसे अधिक कमजोर होता है साहूकार के सामने आँख मे आँख डाल के बात नहीं कर सकता !!

तो क्योंकि हमारी अर्थ व्यवस्था कमजोर है तो धर्म भी कमजोर ही होगा और जिन देशो का धर्म कमजोर होता है वही के नेता धर्मनिरपेक्षता की बात करने लगते है हमारे देश के नेता सुबह से शाम तक जितना धर्मनिरपेक्षता का उच्चारण करते है कोई देश नहीं करता पूरी दुनिया मे !!

सयुक्त अरब ,ईरान ,इराक बहुत छोटे से देश है बहरीन कुवैत बहुत छोटे से शहर के बराबर के देश है फिर भी डंके की चोट पर वो कहते है इस्लाम हम धर्म मानते है और इस्लामिक राज्य हमारा है ! और इन देश मे चले जाइए आप मस्जिद मे अजान जब होगी सभी दुकाने बंद करनी पड़ती है बेशक आप हिन्दू है या ईसाई !!

दुबई अबुदाबी चले जाइए आप ! दोपहर की नमाज जब होगी सभी दुकाने ,सारे कारखाने
सारी फैक्ट्रियाँ सब बंद कर दिये जाते है जितनी देर अजान चलती है और लाउड स्पीकर इतना ऊंचा ऊंचा बोलते है की कान फट जाए आपके ! 50 लाख हिन्दू रहते है दुबई मे सबको कम छोड़ कर बैठ जाना पड़ता है !

ऐसी ही यूरोप मे चले जाइये ईसाईयत का कोई बड़ा पर्व आ गया सरकार क्या सरकार के ऊपर की सरकार सब बंद करके उस पर्व मे लग जाती है वो एक त्योहार आता है ना इनका easter तो easter के समय आप अगर यूरोप मे रहते है भले ही हिन्दू है जबरदस्ती आपको साथ जाना ही पड़ेगा उस छुट्टी के साथ जो की ईसामसी के लिए तय की गई है !

वो कभी नहीं कहते की हम धर्मनिरपेक्ष है धर्मनिरपेक्ष तो कमजोर लोगो का शब्द है !
और भारत की सनातन संस्कृति के परिभाषा माने तो धर्म के निरपेक्ष कुछ होता ही नहीं है ना आप और ना मैं ! संप्रदाय निरपेक्ष कुछ हो सकता है पंथनिरपेक्ष कुछ हो सकता है लेकिन धर्म के निरपेक्ष तो कुछ नहीं होता !!

क्योंकि हमारे यहाँ धर्म के 10 लक्षण है जो धारण करे वो धार्मिक है ,यहाँ मंदिर मे आकर घंटा बजाना कर्मकांड है धर्म नहीं ! धर्म तो धारण करने वाले 10 लक्षणो के आधार पर चलता है वो 10 लक्षण मनुसमृति मे बहुत स्पष्ट दिये है की धर्म क्या है ! जो व्यक्ति उसको धारण करे वो धार्मिक है वो हिन्दू हो मुसलमान हो ईसाई हो पारसी हो इससे कोई लेना देना नहीं !! जो उन लक्षणो को धारण करे वो धार्मिक है ये हमारी परिभाषा है !

लेकिन सविधान मे बिलकुल उल्टा है की जो मंदिर मे जाए घंटा बजाए धार्मिक है ,कोई तिलक चंदन ऐसे लगाए वैसे लगाये वो धार्मिक है ! ये सब कर्मकांड है और कर्म कांड करना इसलिए पड़ता है ताकि आप धर्म से जुड़े रहे धर्म के लक्षणो को धारण किए रहे है !! उनका पालन करते रहे और कर्मकांड नहीं होगा तो छूट जाता है सब कुछ ! तो हमारे ऋषि मुनियो ने बहुत सोच समझ कर धर्म को अलग किया कर्मकांड को अलग किया ! कर्मकांड जिंदगी का हिस्सा बना दिया ताकि आप इससे अलग ना हो जाए ! और धर्म बता दिया की ये 10 लक्षण है जो धारण करे वो धार्मिक !!

मनुसमृति मे बिलकुल स्पष्ट परिभाषा है और इतनी सुंदर परिभाषा है की कोई दे नहीं सकता और पूरे ब्रह्मांड के लिए वही परिभाषा है केवल मनुष्य के लिए नहीं ,पशु पक्षी ,कीड़े मकोड़े ,चींटी हाथी सबके लिए वही परिभाषा है ! तो हमारे यहाँ की परिभाषा के अनुसार धर्म के निरपेक्ष आप चले जाए तो ये दुनिया ही नहीं चलेगी तो भारत मे तो धर्मनिरपेक्ष कुछ नहीं हो सकता यहाँ कुछ हो सकता है तो वो पंथनिरपेक्ष हो सकता है ,की सरकार पंथनिरपेक्ष है इस पंथ का भी नहीं मानती उस पंथ का भी नहीं मानती ! संप्रदाय निरपेक्ष हो सकता है की सरकार इस संप्रदाय का भी नहीं मानती ! उस संप्रदाय का भी नहीं मानती ! तो धर्मनिरपेक्ष होना तो संभव ही नहीं है भारत के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया मे किसी के लिए भी नहीं !!

ईसाईयत भी धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकती है क्योंकि डूब जाएगा सब कुछ ! इस्लाम भी धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता क्योंकि खत्म हो जाएगा सब कुछ ! धर्मनिरपेक्ष तो दुनिया मे कुछ नहीं हो सकता है जो है वो धर्म के सापेक्ष ही हो सकता है ! निरपेक्ष तो कुछ नहीं हो सकता ! पंथ निरपेक्ष कुछ हो सकता है संप्रदाय निरपेक्ष कुछ हो सकता है ! लेकिन हमारे नेताओ को तो ये बात करते भी डर लगता है या तो डरपोक है या मूर्ख है !!
मुझे लगता है उनमे मूर्खता की पराकाष्ठा ज्यादा है ! थोड़ी कमजोरी हो सकती है लेकिन मूर्खता की पराकाष्ठा ज्यादा है !!

तो अंत मित्रो बात ये स्पष्ट होती है जिस देश की समाज की आर्थिक शक्ति मजबूत होती है वही धर्म मजबूत होता है !! वैसे ये शलोक धर्मस्य मूलम अर्थम् अर्थस्य मूलम कामम !भगवान राम ने (कम्ब रामायण ) मे भरत राम संवाद मे कहा है ! और महाऋषि चाणक्य ने इसे दोहराया है !!

पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

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